Tuesday 1 November 2011

नई ग़ज़ल, यात्रा और पड़ाव


ग़ज़ल की लोकप्रियता ने कालांतर में हिन्दी कवियों को भी आकर्षित किया परिणामतः वे भी ग़ज़ल लेखन में प्रवृत होने से स्वयं को रोक नहीं सके. ग़ज़ल लेखन के इस अभियान में कतिपय समय-सापेक्ष परिवर्तन देखने को मिले. यहां तक आते-आते ग़ज़ल ने अपनी  परंपरागत प्रकृति को जो कि प्रायः मात्र रूमानी थी जिसमें जीवन संघर्ष का सर्वथा अभाव था, में आश्चर्यजनक परिवर्तन लक्षित हुआ. अतः इसे नई ग़ज़ल का नाम दिया गया. यांें तो अपने अभिनव प्रतिमानों का अनुगमन करते हुए नई ग़ज़ल को दुष्यंत कुमार और उसके पूर्व के हिन्दी कवियों के रचना कार्य में देखा जा सकता है. परंतु इसके सैद्धांतिक निरूपण का अभाव निरंतर खलता रहा. इस महत कार्य की पूर्ति डॉ. महेंद्र अग्रवाल के शोध-गं्रथ ‘ नई ग़ज़ल’ स्वरूप और संवेदना से हुई. नई ग़ज़ल की स्थापना और विकास की दृष्टि से यह एक अद्भुत कृति है. जिसमें नये प्रतिमानों के परिप्रेक्ष्य में ग़ज़ल के उद्भव और विकास के प्रामाणिक इतिहास को प्रस्तुत करते हुए कृतिकार ने, हिन्दी में विकसित हो रहे इस काव्यरूप के लिए एक ऐतिहासिक कार्य किया है. 
महत्व की बात यह है कि डॉ. अग्रवाल स्वयं नई ग़ज़ल के प्रतिभावान हस्ताक्षर हैं. उनके संपादन में नई ग़ज़ल नाम से एक त्रैमासिकी विगत दस वर्षाें से निरंतर प्रकाशित हो रही है. जिसके माध्यम से उन्होंने नई ग़ज़ल के प्रति रचनाकारों को आकर्षित करते हुए उसके विकास में उल्लेखनीय प्रयास किया है. आपने अपने शोधप्रबंध को आधार बनाकर नई ग़ज़ल की अवधारणा को नये रचनाकारों और शोधकर्ताओं को सुलभ कराने के मंतव्य से उनकी यह नवीन कृति नई ग़ज़ल यात्रा और पड़ाव आपके सामने है. 
काव्य के किसी भी रूप को अपने रचनाकर्म का माध्यम बनाने से पूर्व उसकी पृष्ठभूमि तथा प्रगति के सोपानों से अवगत होना परम आवश्यक है, साथ ही उसकी संवेदना और शिल्प को समझना भी अनिवार्य है. नई ग़ज़ल यात्रा और पड़ाव इस दिशा में एक उपयोगी और ज्ञानवर्धक प्रयास है. डॉ. महेन्द्र अग्रवाल के शोधग्रथ के अन्य अध्याय भी कृतियों के आकार में क्रमशः हमारे सामने आयेंगे. जिसके द्वारा नई ग़ज़ल की अवधारणा का प्रामाणिक स्वरूप हमें उपलब्ध हो सकेगा. नई ग़ज़ल के एक प्रातिभ रचनाकार और विवेचक के रूप में डॉ. अग्रवाल ने जो विषद रूप में अपनी एक निष्ठ साधना का परिचय दिया है उससे इस काव्यरूप के प्रवर्तक के रूप में उन्हें सदैव स्मरण किया जायेगा. इस प्रसंग में होने वाले हर विमर्ष में उनके इस मूल्यवान प्रदेय को ससम्मान रेखांकित किया जायेगा. हमें विश्वास है कि नई ग़ज़ल यात्रा और पड़ाव के प्रकाशन से आरंभ हुआ यह प्रयाण हर दृष्टि से 
संबंधित विधा के रचनाकर्म को प्रामाणिकता प्रदान करेगा. जिसको रचनाकारों और पाठकों के बीच ससम्मान स्वीकृति मिलेेगी. 
प्रो. विद्यानन्दन राजीव
नई ग़ज़ल, यात्रा और पड़ाव/ डॉ. महेन्द्र अग्रवाल/प्रथम संस्करण 2011/मूल्य-180 रू./ नई ग़ज़ल प्रकाशन शिवपुरी म.प्र. 

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