Tuesday 1 November 2011

ग़ज़ल और नई ग़ज़ल


नई ग़ज़ल की नई पहल


परिवर्तन विकास का परिचायक होता है। प्रचलित परिपाटी से हटकर जब कोई भी मुद्दा या कार्य अपने अस्तित्व की नींव रखने में संलग्न होता है तो उसे वर्तमान परिस्थितियों से बेशाख्ता जूझना पड़ता है। अपनी जद्दोजहद में वह अपने को स्थापित करने की लड़ाई तो करता ही है उस कार्य शैली के संरचनात्मक परिवर्तन को भी उसे स्पष्ट करना पड़ता है। 
साहित्य में विभिन्न विधाएँ एवं धाराएँ चलीं पर जब नवीन उन्मेष उनमें हुए तो अस्तित्व की लड़ाई चल पड़ी. अपने पूर्वापर से इतर परिवर्तन के साथ नवीन भाव शैली से युक्त कुछ विधाएँ आयीं तो उन्हें ‘नई’ संज्ञा से अभिहित किया गया जिनमें नई कविता, नई कहानी, नवगीत और नई ग़ज़ल  मुख्य हैं .किसी भी क्षेत्र का 
शोध कार्य  नवीन स्थापनाएँ स्थापित करने में सहायक होता हैैं साहित्य में किया गया शोध विधा को नवीन दृष्टि देता है और आगे के मार्ग को भी प्रशस्त करता है साहित्य में तो कई विधाएँ और कई धाराएँ प्रचलित रहीं हैं अतः उनमें निहित सम्भावनाए शोध की मांग करती हैं बल्कि शोध भी समय समय पर नवीन उद्भावनाओं के वशीभूत नयी व्याख्याओं के रेखांकन की मांग करता है.  
डॉ महेन्द्र अग्रवाल की पुस्तक‘‘ग़ज़ल और नई ग़ज़ल’’ में ग़ज़ल के तथ्यात्मक पहलू और उनके विभेद को स्पष्ट करते हुए उनके विचार अपनी भावाभिव्यक्ति में सटीक बैठते हैं.पुस्तक में  ग़ज़ल के जन्म से लेकर वर्तमान तक आते-आते विभिन्न भावभूमि में अनेक परिवर्तनों के वर्णन के साथ नई ग़ज़ल के तर्कसम्मत पहलुओं को भी स्पष्ट किया गया है। ग़ज़ल  का संबंध अरबी माद्दा गैन-जे-लाम से है जिसका अर्थ ‘‘औरतों से बातें करना है’’
अपनी बात को स्पष्ट और प्रमाणित करने के लिये पुस्तक में तीन सोपान रखे गये हैं:- नई ग़ज़ल-परिचय, नई ग़ज़ल - काव्य यात्रा एवं नई ग़ज़ल-विधा विभेदन.प्रथम सोपान के अन्तर्गत ग़ज़ल और नई ग़ज़ल की परिभाषा,सीमा,स्त्रोत,व समीक्षकों की  अवधारणाओं के साथ नई ग़ज़ल   का नयापन एवं अंकन पर प्रकाश डाला गया है. ग़ज़ल  के शाब्दिक अर्थ को स्पष्ट करते हुए डॉ अग्रवाल ने उसकी विभिन्न परिभाषाओं की तर्कसम्मत  व्याख्या करते हुए ग़ज़ल के विभिन्न परिवर्तनों को विकासवाद के सिद्धान्त को जोड़ते हुए जन्तुशास्त्रीय तर्क भी उन्होंने प्रस्तुत किये हैं.सटीक प्रश्न उठाते हुए डॉ अग्रवाल लिखते हैं कि नये दौर की ग़ज़लों को जो नवीन विशिष्टताओं को रेखांकित करती हैं क्या कहें ? ग़ज़ल को ग़ज़ल रहने दिया जाये, यह मानने पर भी इन परिवर्तनों, नवीनताओं, विशिष्टताओं को सूचित करने के निये आखिर कौन सा विशेषण ग़ज़ल के साथ जोड़ें ? ;पृष्ठ 12इसलिये उन्होंने सतर्क अपनी बात को रखते हुए ग़ज़ल के साथ नई संबोधन को उचित ठहराया है। अपनी इस बात को तर्कसम्मत बनाने के लिये उन्होंने विभिन्न ग्रन्थों को पढ़कर और कतिपय विद्वानों की परिभाषाओं को दृष्टिगत रखते हुए नई ग़ज़ल की व्याख्या और विवेचना की है.
नई ग़ज़ल में परिवर्तन के साथ कथ्यगत परिवर्तन भी स्वाभाविक हैं.नई ग़ज़ल ने अपने युग के संघर्ष, वैषम्य, विसंगतियों और विद्रूपताओं को अभिव्यक्ति प्रदान की है.
 नई ग़ज़ल की सीमाओं के अन्तर्गत ग़ज़ल की सीमाओं का अंकन किया गया है, जिनमें केन्द्रीय भाव का अभाव, क़ाफ़िये के बंधन और भावाभिव्यक्ति का निश्चित दायरा इसकी प्रमुख कमियाँ हैं.नई ग़ज़ल स्त्रोत में नई ग़ज़ल को वर्ण संकरी व्युत्पत्ति माना गया है. उर्दू में विकसित होने वाली ग़ज़ल फारसी उर्दू भाषा संस्कृति का मिश्रित रूप है, हिन्दी ग़ज़ल उर्दू-हिन्दी के भाषा संस्कृति के सम्मिश्रण का प्रतिफल है जो हिन्दी का समसायिक कविता के प्रभाव से नई ग़ज़ल के रूप में प्रस्फुटित हुई है. 
डॉ अग्रवाल ने नई ग़ज़लं की विकास यात्रा को मैण्डेल के वंशगति के नियमों के आधार पर सुगमता से समझाने का प्रयास किया है.नई ग़ज़ल  ने जीवन के एकांगी रूप को टटोलने की अपेक्षा जीवन की प्रत्येक पर्त को उघाड़कर देखा है, जीवन की छोटी से छोटी घटना को हर कोण से जांचा परखा है. वर्तमान जीवन को समसामयिक परिस्थितियों में भी और बेहतर और अधिक सुन्दर बनाने का उद्देश्य और प्रगतिशीन दृष्टिकोण भी नये ग़ज़लकारो ने प्रस्तुत किया है. नई ग़ज़ल बदलती हुई परिस्थितियों का प्रतिफल है. नई ग़ज़ल ने सतही भावुकता को त्यागकर युग की बिडम्बनाओं से सम्पृक्त  कर उसमें संघर्ष और आशावाद का स्वर मुखर है। शिल्पगत भी नवीन प्रयोग इसमे किये गये हैं.
द्वितीय सोपान के अन्तर्गत नई ग़ज़ल की काव्य यात्रा पर प्रकाश डाला गया है।नई ग़ज़ल की भावभूमि , सृजन की मानसिकता के साथ-साथ आठवें दशक से पूर्व की ग़ज़लों, आठवें दशक की ग़ज़लें , नवें दशक की ग़ज़लों का भी विषद् वर्णन किया है.तृतीय सोपान के अन्तर्गत  नई ग़ज़ल- विधा विभेदन का जिक्र करते हुए उसे कई स्तरों पर विवेचित किया है. कालक्रम, परिदर्शन, कहन, भाषा और प्रतीक व बिम्ब के आधार पर उसे व्याख्यायित करने का प्रयास किया है.
त्रुटियाँ एवं कमियाँ हर पुस्तक का आधारभूत हिस्सा होता है पर ये कमियाँ  शोध कार्य की प्रासंगिता को नष्ट नहीं होने देतीं. विकासयात्रा में ही काव्ययात्रा का समावेश हो सकता था अलग से अध्याय की आवश्यकता नहीं थी ग़ज़ल के नयेपन को स्पष्ट करने में कई स्थानों पर पुनरावृत्ति हुयी है.
विभिन्न संदर्भों के साथ अस्सी पृष्ठों में समाहित आलोचनात्मक पुस्तक आलोचना के सभी मानदण्ड पूर्ण करने में सक्षम है. ग़ज़ल पर अन्य विधाओं की तुलना में कम ही लिखा गया है.प्रस्तुत पुस्तक जिज्ञासु ग़ज़ल प्रेमियों के साथ-साथ शोधार्थियों के भी कई प्रश्नों की पूर्ति करने में समर्थ सिद्व होगी. डॉ अग्रवाल स्वयं भी नई ग़ज़ल के हस्ताक्षर हैं अतः उन्होंने बड़ी ही तल्लीनता एवं गहराई से इस शोध को पूर्णता प्रदान की है. उन्होंने ग़ज़ल को नये आयाम और नयी उद्भावनाओं की निर्मिति में योगदान दिया है. ग़ज़ल को हुस्न और इश्क की बंदिशों से दूर कर उसे समसामयिक समस्याओं के निकट लाने में ऐसी विचारवान् , शोधपरक पुस्तकों और नए ग़ज़लकारों की महती भूमिका रही है.एक अच्छे ग्रन्थ के लिये डॉ महेन्द्र अग्रवाल बधाई के पात्र हैं.
समीक्षक- डॉ पद्मा शर्मा पुस्तक- ग़ज़ल और नई ग़ज़ल लेखक- डॉ महेन्द्र अग्रवाल
प्रकाशन- नई ग़ज़ल प्रकाशन शिवपुरी म. प्र.मूल्य- 120 रुपये

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