Thursday 11 October 2012

ग़ज़ल और नई ग़ज़ल


ग़ज़ल और नई ग़ज़ल
समीक्षक- डाॅ. पशुपतिनाथ उपाध्याय डी.लिट्.
आज के परिवेश में आधुनिक राष्ट्रीय जीवन को केन्द्र में रखकर उदात्त कोमल भावनाओं के साथ ग़ज़लें लिखी जा रही हैं. क़ाफि़या और रदीफ़ में भी सरलता, कोमलता एवं लचीलापन आ गया है. इस प्रकार उर्दू ग़ज़ल का भी एक परिप्रेक्ष्य में नवीन संस्कार हुआ है. परंपरागत स्ट्रक्चर एवं टेक्चर दोनों में परिमार्जन हुआ है. जीवनानुभूति को साक्ष्य मानकर ग़ज़लकार राग की परिधि के भीतर वैचित्र उत्पन्न करते हुए ग़ज़ल लिख रहे हैं. जिसमें सम्प्रति डाॅ. महेन्द्र अग्रवाल का विशेष योगदान है. उनकी सैद्धांतिक कृति ग़ज़ल और नई ग़ज़ल , ग़ज़ल काव्यरूप का जीवंत दस्तावेज है. नई ग़ज़ल दिशा और दशा पर भी उनकी कृति प्रकाशित हो चुकी है. नई ग़ज़ल स्वरूप एवं संवेदना नामक शोध-प्रबंध लिखकर डाॅ. अग्रवाल ने ग़ज़ल काव्यरूप पर अपना गंभीर चिंतन मनन करके एक नव्य वैचारिक क्रांति लाने का प्रयास किया है. उनकी अवधारणा है कि परंपरागत ग़ज़ल में प्रमुखतः हुस्न और इश्क की ही चर्चा हुई है किन्तु नई ग़ज़ल का मूल प्रतिपाद्य समकालीन मानव जीवन की समग्र आलोचना है, यह यथार्थवाद के ठोस धरातल पर खड़ी है. ....नई ग़ज़ल ने जीवन के एकांगी रूप को टटोलने की अपेक्षा जीवन की प्रत्येक पर्त को उघाड़कर देखा है.  (पृ.28-29) इस प्रकार नई ग़ज़ल की भावभूमि में नव्यता और भव्यता लाने का प्रयास किया गया है ताकि ग़ज़ल काव्यरूप की दिव्यता प्रमाणित हो सके.
ग़ज़ल और नई ग़ज़ल मात्र कृति ही नहीं अपितु कृति का प्रथम अध्याय एवं प्रस्थान बिंदु है जिसमें ग़ज़ल काव्यरूप का सर्वेक्षण-निरीक्षण ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में इतिवृतात्मकता के धरातल पर किया गया है. रचनाकार की मान्यता है कि नई ग़ज़ल की विशिष्टताओं में रूमानी भावुकता से मुक्ति का प्रयास, वण्र्य-विषय का       वैविध्य, नवीन प्रयोगों की स्पृहा, समसामयिकता, लोकोन्मुखता, व्यंग्यात्मकता, विद्रोहात्मकता, मानवीयता, स्पष्टवादिता, बौद्धिकता, विश्वसनीयता, भाषा की सहजता व शब्दावली की उन्मुक्तता को रेखांकित किया जा सकता है. (पृ. 16) ग़ज़लकारों की अवधारणाओं का उल्लेख करते हुए नई ग़ज़ल का नयापन इंगित किया गया है जिसमें नई ग़ज़ल  के भाव, भाषा एवं शिल्प में नव्यता देखी गई है. चूंकि ग़ज़लें थोक में लिखी जा रही हैं और ग़ज़लकारों ने संवेदना और शिल्प दोनों स्तरों पर स्वच्छंदतावादी रूचि का परिचय दिया है इसलिए शिल्प
विधान में दोष आना स्वाभाविक ही था फिर भी कुछ रचनाकारों ने संयम और धैर्य का परिचय देते हुए ग़ज़लें लिखीं हैं. उन्हीं रचनाकारों में एक नाम डाॅ. महेन्द्र अग्रवाल का भी है जिन्होंने परंपरानुगमन में विश्वास रखते हुए अपनी नई जमीं तलाश की है तथा नए तेवर से ग़ज़लें लिखी हैं.
वस्तुतः ग़ज़ल और नई ग़ज़ल कुछ सीमा तक ग़ज़ल और हिन्दी ग़ज़ल की पर्याय हैं, अपर नाम हैं, समानार्थी और वाच्यार्थी हैं. प्रयोगधर्मी रचनाकार ने ग़ज़ल काव्यरूप का सम्यक विवेचन-विश्लेषण करने के उपरांत अपना स्पष्ट उल्लेख किया है कि प्रतीक तथा बिम्ब विधान के आधार पर भी नई ग़ज़ल को ग़ज़ल परंपरा से पृथक किया जा सकता है. (पृ.76) नई ग़ज़ल काव्ययात्रा में अनेक पड़ाव को रचनाकार ने संदर्भित किया है. भावभूमि और सृजन की मानसिकता का आलोकन विलोकन करते हुए आठवें, नवें एवं दशवें दशक की ग़ज़लों के परिपे्रक्ष्य में अनुसंधानात्मक शैली में भावभिव्यक्ति की गई है. कालक्रम,परिदर्शन, कहन, भाषा, प्रतीक और बिम्ब विधान के आधार पर भी अपना निजीमत बनाकर रचनाकार ने तथ्यानुशीलन को व्यावहारिक धरातल प्रदान किया है. सैद्धांतिक समीक्षा को गतिमान बनाने में ग़ज़ल काव्यरूप पर यह एक अद्भुत कृति है जिसके लिए डाॅ. महेन्द्र अग्रवाल की अनुशंसा करना साहित्यिक धर्म बन जाता है. कृति का प्रणयन श्रमपूर्वक किया गया है. कृति स्वागत योग्य है.
8-29ए शिवपुरी अलीगढ202001

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