Thursday 11 October 2012



क़बीले की नई आवाज़         

अब यह तथ्य निर्विवाद है कि नई ग़ज़ल के रूप में ग़ज़ल हिन्दी की एक महत्वपूर्ण काव्यविधा  का रूप ग्रहण कर चुकी है यद्यपि इस के सैद्धांतिक प्रतिमानों का यथावत अनुपालन करने का प्रयास रहा है. भाषा और अन्तर वस्तु के स्तर पर निश्चय ही परिवर्तन लक्षित हुए है. नई ग़ज़ल में प्रयुक्त भाषा को संकर-भाषा के रूप में देखा जा सकता है, जो कि न तो खालिस उर्दू है, और न हीं खालिस हिन्दी ही. सामान्यतया उसे गंगा-जमुनी संस्कृति की, आम बोल-चाल की भाषा के नजदीक देखा जाता रहा है. इस भाषा के नूतन प्रयोग के बल पर नई ग़ज़ल की संप्रेषण क्षमता में आशातीत वृद्धि हुई है. वस्तुतः संप्रेषण का गुण किसी रचना को सफलता प्रदान करने में सर्वाधिक महत्वपूर्ण रहा है. जहां तक अन्तर्वस्तु में आये परिवर्तन का प्रश्न है, यही वह बिन्दु है जिसने नई ग़ज़ल के अस्तित्व को हिन्दी में स्थापित करने में अदभुत योग प्रदान किया है. 
विगत वर्षों में नई ग़ज़ल के अनेक संकलन प्रकाश में आये हैं, जिन्हें देख कर इस धारणा को बल मिला है, कि अभिव्यक्ति के लिये काव्य का कोई भी रूप हो, जब तक उसके शिल्प में ताज़गी और अन्तर वस्तु में अपने समय के प्रति ईमानदारी नहीं होगी तब तक उसे साहित्यिक और सामाजिक परिवेश में स्वीकृति नहीं मिलेगी. नई ग़ज़ल का अभियान कतिपय ऐसे ही बदलते प्रतिमानों का अनुसरण करता हुआ, अपनी सृजन यात्रा को निरन्तरता प्रदान कर रहा है.
इस अभियान में डाॅ.महेन्द्र अग्रवाल का बहुमुखी योगदान उल्लेखनीय है. नई ग़ज़ल पर केन्द्रित  उनका शोध कार्य इस काव्य रूप को सुव्यवस्थित स्थिति तक पहुंचाने की दिशा में मील का पत्थर साबित हुआ है, जिसका क्रमशः प्रकाशन हो रहा है. इसके साथ ही डाॅ.अग्रवाल के सम्पादन में नई ग़ज़ल त्रैमासिकी अपने अविरत प्रकाशन के माध्यम से इसे अप्रतिम और समीचीन योग प्रदान कर रही है. कवि स्वयं भी नई ग़ज़ल का एक प्रतिभावान रचनाकार है जिसकी ग़ज़लें न केवल सैद्धांतिक रूप में, वरन युगीन यथार्थ को अभिव्यक्तित्व देने तथा आज के बदलते मानव व्यवहार की विसंगतियों को उजागर करने के कारण अपनी अलग छवि निर्मित करने में सफल रहीं हैं. हाल ही में उनकी ग़ज़लों का नया संकलन ग़ज़ल कहना मुनासिब है यहीं तक प्रकाशित हुआ है, जिसमें उनके द्वारा रचित विगत दो-तीन वर्षों के काल खंड की रचनायें संकलित हैं.
वर्तमान समय में राजनीति के क्षेत्र में जो अवमूल्यन हुआ है तथा कदाचरण की पराकाष्टा हुई है उसके प्रति कवि का आक्रोश कतिपय शेरों में बड़ी तल्खी के साथ प्रकट हुआ है, इस प्रसंग में उनके            कुछ शेर- आज  मुज़रिम भी सियासत में सितारों जैसे
यार लगता है मेरे मुल्क में क़ानून नहीं
निज़ामत बेअसर है या हंै कारिन्दे करिश्माई 
उन्होंने रोटियां भेजीं निवाले ही नहीं आये
है तो नामुमकिन सा पर मुमकिन हुआ इस मुल्क में
आदमी हो और नेता और दंगाई भी हो
सोचता है आजकल क़ानून, चैखट पर खड़ा
जो सलाखों में रहा, राजा वही दरबार में
इधर के समय में अतिशय भौतिकता का दौर अपनी चरम सीमा को भी लांघ चुका है जिसके चलते व्यक्ति आत्मकेन्द्रित हो चला है. परिवार टूट रहे हैं, प्रेम सम्बन्धों में दरार पड़ गई है. लोक-व्यवहार की यह पराभव ग्रस्त दशा इन शेरों में देखें- बेजु़बां रह गया यकलख़्त जो भाई बोला
तेरा कमरा है उधर, और इधर मेरा है
मुसीबत में अकेले अब, कोई अपना नहीं लगता
तमाशा देखतें हैं सब, कोई अपना नहीं लगता 
हर जगह आदर्श, नैतिकता, नज़ीरें
यार सांचे में ढला कोई नहीं है
नई ग़ज़ल एक प्रयोग धर्मी काव्य रूप है इसके रचनाकार को निरंतर, अभिव्यक्ति के नये कोण तलाशने होते हैं. यथार्थ परक अन्तर वस्तु इसकी पहचान है. कथ्य का यह नयापन नई ग़ज़ल की छवि को चमत्कारी सौन्दर्य प्रदान करता है. डाॅ.महेन्द्र अग्रवाल की ग़ज़लों में  ऐसे शेर बहुलता से देखे जा सकते हैं जिनकी वंकिम उक्तिगत कमनीयता और सुगंध मानस को आनन्द विभोरकर कर देती है इस प्रसंग में कतिपय शेर-
करेंगे एक दिन इस बात पर सब नाज़ मानो भी 
मैं हूं अपने क़बीले की, नई आवाज़, मानो भी
ग़ज़ल में कुछ नया कहना, ग़ज़ल को कुछ नया देना
बस इतना सोच के रखा, अलग अंदाज़, मानो भी
मेरी उर्दू में शायद कुछ मेरी हिन्दी झलकती है
इसी तहज़ीब पर अब भी है मुझको नाज़ मानो भी
यहां पर तीसरे शेर में अभिव्यक्ति विचार से मेरे द्वारा नई ग़ज़ल की भाषा विषयक धारणा की पुष्ठि होती जो इस आलेख के आरंभ में व्यक्त की गई है.
प्रस्तुत ग़ज़ल संग्रह पर विहंगम दृष्टि डालने के उपरान्त इस विचार को बल मिलता है कि डाॅ.महेन्द्र अग्रवाल ने नई ग़ज़ल को एक हिन्दी काव्यरुप में स्थापित करने के लिये जो अदभुत रचनाकर्म प्रस्तुत किया है. वह ऐतिहासिक महत्व का प्रदेय है. नई ग़ज़ल के प्रसंग में प्रत्येक विमर्श में इसके महत्व को सदैव रेखांकित किया जाता रहेगा. साथ ही ‘‘ग़ज़ल कहना मुनासिब है यहीं तक’’ संकलन की ग़ज़लों को क़बीले की नई आवाज़         
के रुप में रचनाकारों और सुहृद पाठकों के बीच सम्मान प्राप्त होगा.
-प्रो.विद्यानन्दन राजीव 
4-इन्द्रप्रस्थ नगर , शिवपुरी म.प्र.-473551 

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